Essay on Bhagat Singh in Hindi | भगत सिंह पर निबंध 2024

Essay on Bhagat Singh in Hindi | भगत सिंह पर निबंध में भारत के महान क्रन्तिकारी सरदार भगत सिंह की जीवन के बारे में पढ़ेंगे और यहाँ से आप कक्षा 5 ले कर 12 तक के छात्रों के लिए उपयोगी निबंध ( Eassy ) भी Bhagat Singh पर पढ़ सकते है |

Essay on Bhagat Singh in Hindi में हम भगत सिंह की जीवनी भी पढ़ेंगे| Essay on Bhagat Singh in Hindi में उनके योगदान पर प्रकाश डालेंगे | 

essay on bhagat singh in hindi
Essay on bhagat singh in hindi

                                                                               Essay on Bhagat Singh in Hindi

भगत सिंह पर निबंध | Essay on Bhagat Singh in Hindi

सरदार भगत सिंह वर्ष के भारतवर्ष के प्रमुख क्रांतिकारी है |  इनका नाम भारत के प्रमुख अमर शहीदों के रूप में लिया जाता है | सरदार भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 बंगा गांव में हुआ था | उनका जन्म उस समय के पंजाब जिला के लायलपुर (जो अभी  पाकिस्तान में है) एक देशभक्त परिवार में हुआ था | जो एक सिख परिवार से ताल्लुक रखता था|

इनका परिवार देश भक्त परिवार होने के कारण इनके जीवन पर इसका विशेष प्रभाव पड़ा उनके पिता का नाम “सरदार किशन सिंह” और माता जी का नाम “विद्यावती कौर” था |

यह का परिवार एक सिख परिवार था | इस परिवार ने आर्य समाज के विचार को अपना लिया “सरदार भगत सिंह” के परिवार पर आर्य समाज महर्षि दयानंद जी की विचारधारा का विशेष प्रभाव था | Bhagat Singh के जन्म के समय भगत सिंह के पिता “सरदार किशन सिंह” एवं उनके दो चाचा “सरदार अजीत सिंह” और “सरदार स्वर्ण सिंह” अंग्रेजों के विरोध करने के कारण जेल में बंद थे|

 जिस दिन सरदार भगत सिंह ( Bhagat Singh )पैदा हुए थे |उसी दिन उनके पिता और चाचा को जेल से रिहा कर दिया गया | इस दिन मनो  की भगत सिंह के परिवार की खुशियां दुगनी हो गई | इसीलिए भगत सिंह ( Bhagat Singh ) के जन्म के बाद इनकी दादी ने उनको “भागो वाला” कहा जिसका मतलब होता है “अच्छे भाग्य वाला” इसलिए इनका नाम “भगत सिंह” कहां जाने लगा|

 भगत सिंह ( Bhagat Singh ) 14 वर्ष की आयु से ही पंजाब में कार्यरत क्रांतिकारी संस्थाओं के लिए कार्य करने लगे | नौवीं की परीक्षा डी ए वी कॉलेज से  पास की| जब उन्होंने 1923 में इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की तब इनके घर वालों ने इनके विवाह  की तैयारियों में जुट गए | परंतु  इनका मन देश सेवा में अधिक लगता था यह पारिवारिक जीवन में बधना नहीं चाहते| उन्होंने निर्णय लिया और उन्होंने देश सेवा के लिए घर परिवार त्याग कर दिया | लाहौर से भागकर कानपुर आ गए और यहां पर इन्होंने अपने पूरे जीवन को देश सेवा के लिए समर्पित कर दिया | 

भगत सिंह ( Bhagat Singh ) ने देश की आजादी के लिए अदम्य साहस के साथ ब्रिटिश सरकार के साथ डटकर मुकाबला किया | भगत सिंह ( Bhagat Singh ) नवयुवकों और आज की नई पीढ़ी के लिए एक बहुत बड़ा आदर्श हैं |  Bhagat Singh  को उर्दू ,हिंदी, पंजाबी ,अंग्रेजी के अलावा बांग्ला भाषा का भी अच्छा ज्ञान था |

इन्होंने बांग्ला भाषा बटुकेश्वर दत्त   से सीखी थी| इनके जेल के दिनों के लेखों और खतो को पढ़कर उनके विचारों का अंदाजा लगता है | उन्होंने भारतीय समाज में धर्म ,भाषा और जाति के कारण आई दूरियों पर बहुत ही अधिक दुख व्यक्त किया था|

 उन्होंने समाज के किसी कमजोर वर्ग पर किसी भारतीय के  प्रहार को भी उसी नजरिए से देखा और सोचा जितना किसी अंग्रेज के द्वारा किए गए अत्याचार को | उनको पूर्ण विश्वास था कि भारतीय जनता उनकी शहादत से उग्र हो जाएगी और  उनका यह भी मानना था,  कि यदि वह जिंदा रहेंगे तो ऐसा बिल्कुल नहीं हो पाएगा और वह कभी नहीं चाहते थे  |

कि भारतीय लोग अंग्रेजों के इस अत्याचार को  निरंतर सहते रहे इसीलिए उन्होंने मौत की सजा सुनाने के बाद भी माफीनामा लिखने से इनकार कर दिया|

 13 अप्रैल 1919 अमृतसर के जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह की सोच पर इतना गहरा प्रभाव डाला की लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़ कर Bhagat Singh ने भारतवर्ष के आजादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की|

काकोरी कांड में राम प्रसाद बिस्मिल के साथ 4 क्रांतिकारियों को फांसी और 16 अन्य को आजीवन कारावास की सजा से सरदार भगत सिंह इतने ज्यादा बेचैन हुए थे | उन्होंने चंद्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी “हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन” में सम्मिलित हो गए और इस पार्टी को एक नया नाम दिया “हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन”|  इस संगठन का प्रमुख उद्देश्य था जो नवयुवक सेवा ,त्याग और पीड़ा झेल सकने वाले  नवयुवकों को तैयार करना|

 इसके बाद राजगुरु के साथ मिलकर सरदार भगत सिंह ने 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेजी अधिकारी “जेपी सांडर्स” को मारा इस कार्यवाही में क्रांतिवीर चंद्रशेखर आजाद ने भी उनकी पूरी तरह सहायता की| 

इसके बाद सरदार भगत सिंह ( Bhagat Singh ) ने अपने क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ अलीपुर रोड दिल्ली में स्थित ब्रिटिश भारत  की तत्कालीन सेंट्रल असेंबली के सभागार में 1929 अप्रैल 8 को अंग्रेजी सरकार को जगाने के लिए बम और पर्चे फेंके | बम फेंकने के बाद यह लोग वहां से भागे नहीं इन्होंने अपनी गिरफ्तारी दी जिससे अंग्रेजी सरकार को पता चले भारत में उनका अत्याचार अब नहीं चलेगा|

 इसके बाद लाहौर षड्यंत्र केस मुकदमे में  Bhagat Singh को और उनके दो अन्य साथी सुखदेव और राजगुरु को 23 मार्च 1931 को एक साथ एक ही समय पर फांसी पर लटका दिया गया | लाहौर षड्यंत्र के मुकदमे के बाद इनकी फांसी 24 मार्च को तय की गई थी परंतु अंग्रेजी सरकार भारतीय जनता से इतनी डरी हुई थी कि इनको  फांसी 23 और 24 मार्च के मध्य रात्रि को ही फांसी दे दी| इन वीर सपूतों के पार्थिव शरीर को रात के अंधेरे में सतलुज के किनारे अंतिम संस्कार कर दिया |

एक बहुत बड़ा   संयोग ही था कि जब  उन्हें फांसी दी गई और उन्होंने इस संसार से विदा ली |उस वक्त उनकी उम्र मात्र 23 वर्ष 5 महीना और 23 दिन  ही था और वह दिन भी 23 मार्च ही था | उन्होंने अपने फांसी से पहले ब्रिटिश सरकार को एक पत्र लिखा था |जिसने उन्होंने लिखा था, कि उन्हें अंग्रेजी सरकार के खिलाफ भारतीयों के युद्ध का प्रतीक एवं युद्ध बंदी समझा जाए और फांसी देने की वजह उन्हें गोली से उड़ा दिया जाए लेकिन ऐसा कदापि नहीं हुआ|

Bhagat Singh, राजगुरु और सुखदेव की शहादत से ना केवल अपने देश भारत को स्वतंत्र संघर्ष में गति मिली | बल्कि नवयुवकों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए  और यह लोग समस्त शहीदों के सिरमौर और नायक बन गए |भारत और साथ ही साथ पाकिस्तान की जनता उन्हें आजादी के दीवाने के रूप में देखती है जिन्होंने अपनी सारी जिंदगी देश सेवा के लिए समर्पित कर दी और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मिसाल पेश किया|

 उनके जीवन पर आधारित भारत में कई फिल्में भी बनी जिनमें शहीद भगत सिंह, द लीजेंड ऑफ भगत सिंह और शहीद  आदि |

आज भी पूरा देश इनके बलिदान का कर्जदार है इनके बलिदान को पूरे सम्मान के साथ याद करता है और इनके बलिदान को कभी नहीं भूल सकता | जब तक यह पृथ्वी रहेगी तब तक  Bhagat Singh नाम अमर रहे रहेगा |  भारत की जनता  Bhagat Singh के  बलिदानों का कर्ज कभी नहीं उतार सकते और यह नवयुवकों के लिए एक नायक और आदर्श के रूप में हमेशा ही मार्गदर्शन करते रहेंगे| 

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धन्यवाद !

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