Satyavadi Raja Harishchandra – खुद के बेटे के दाह संस्कार करने के लिए भी ले लिया था कर!

Satyavadi Raja Harishchandra राजा हरिश्चंद्र ( Raja Harishchandra ) अयोध्या के सत्यवादी धर्म परायण राजा थे | राजा हरिश्चंद्र भगवान राम के पूर्वज थे |

यह अयोध्या के प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा थे | उनके पिता सत्यव्रत थे | Raja Harishchandra को अपनी सत्य निष्ठा के लिए जाना जाता है | यह अपनी सत्यनिष्ठा के कारण अनेकों बड़े कष्ट सहने पड़े |

परंतु इन्होंने अपने सत्य निष्ठा को कभी नहीं छोड़ा उन्होंने अपने सत्य निष्ठा को बनाए रखने के लिए स्वयं के बेटे  के दाह संस्कार के लिए अपनी पत्नी  से कर तक ले लिया था |

satyavadi raja harishchandra
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सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र जीवन परिचय | Satyavadi Raja Harishchandra Biography in Hindi|

राजा हरिश्चंद्र ( Raja Harishchandra ) राजा राम के पूर्वज और सूर्यवंशी (इक्ष्वाकु वंश, अर्कवंशी, रघुवंशी ) राजा थे | यह अपने सत्य निष्ठा के लिए जाने जाते हैं | इन्होंने अपने सत्य निष्ठा के लिए स्वप्न में विश्वामित्र जी को अपना राज्य दान कर दिया था |

इस प्रकार दान दिए जाने से विश्वामित्र जी उनके दरबार में आए और उनसे कहा कि आपने यह राज्य मुझे दान में दे दिया है अतः आप यहां के राजा नहीं इस बात को Raja Harishchandra ने स्वयं स्वीकार किया |

Raja Harishchandra
Raja Harishchandra

कहा की मैंने स्वप्न में यह राज्य पाठ आप को दान में दिया है |

उन्होंने अपनी सत्य निष्ठा साबित करते हुए अपने पुत्र और पत्नी के साथ राज्य का त्याग कर, राज्य विश्वामित्र जी को दान देकर राज्य के बाहर निकल गए और काशी  चल दिए |

Raja Harishchandra जब अयोध्या के राजा थे | तब यह बहुत समय तक पुत्र विहीन रहे | इनके मन में एक पुत्र की लालसा थी | पुत्र की लालसा में  अपने कुलगुरू वशिष्ठ जी के उपदेश पर उन्होंने वरुण देव की उपासना की उपासना से वरुण देव बहुत प्रसन्न हुए और इन्हें पुत्र प्राप्ति का  वर दिया |

 

 

परंतु उन्होंने Raja Harishchandra जी के सामने एक शर्त रखा आपको जब पुत्र की प्राप्ति होगी उसके  बाद आपको उस पुत्र की यज्ञ में बलि देनी होगी जिससे आपकी पुत्र प्राप्ति की कामना पूर्ण होगी |

इस प्रकार की शर्त को राजा हरिश्चंद्र ने उस समय स्वीकार कर लिया | जिसके फलस्वरूप Raja Harishchandra को एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम रोहिताश रखा गया |

एक बार सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र ने भी झूठ बोला था | Raja Harishchandra ki Kahani |

Raja Harishchandra ने जब वरुण देवता से पुत्र प्राप्ति का वर मांगा और कहा की पुत्र प्राप्ति होगी तो मई उस पुत्र को यज्ञ पशु के रूप में आप को बलि दूंगा परन्तु ,जब राजा हरिश्चंद्र की को रोहिताश की प्राप्ति हुई | उसके उपरांत वरुण देव जी ने उन्हें स्मरण करवाया कि आपको इस पुत्र की बलि मुझे देनी होगी |

परंतु  Raja Harishchandra पुत्र मोह में इतने आ गए थे |  वह रोहिताश की बलि नहीं देना चाहते थे  और वरुण देव जी को कई वर्षों तक अपने  किए गए वादे से  डालते रहे इस पर वरुण देव जी को क्रोध आया और उन्होंने राजा हरिश्चंद्र को जलोदर रोग होने का श्राप दिया| इस श्राप से दुखी होकर राजा हरिश्चंद्र वशिष्ठ जी के पास  पहुंचे और अपनी व्यथा व्यक्त की|

Raja Harishchandra की बात सुनकर वशिष्ठ मुनि , राजा को यज्ञ करने के लिए कहा परंतु इस बात की सूचना इंद्र को मिली और इंद्र ने यह सूचना रोहिताश को देखकर उसे  वन में भगा दिया |

 राजा हरिश्चंद्र ने खुद को  श्राप मुक्त करने के लिए एक गरीब ब्राह्मण को कुछ आर्थिक मदद कर के उनसे उनका बालक शुनः  शेपको  को खरीद लिया |

 यज्ञ की तैयारी प्रारंभ कर दी लेकिन उस समय बलि देने वाले शमिता ने कहा कि वह तो केवल पशु की बलि देता है | मनुष्य की बलि नहीं देता | यह कह कर वह वहां से चला गया|

जिससे राजा अत्यंत दुखी हुए उनके इस दुख को दूर करते हुए विश्वामित्र में शुन:शेप  को एक मंत्र बताया | उसे  उसका जाप करने के लिए कहा जैसे ही उसने  मंत्र का जाप किया |

वहां पर वरुण देव प्रकट हुए और बोले हरिश्चंद्र तुम्हारा यज्ञ पूरा हुआ | मैं तुम्हें इस श्राप से मुक्त करता हूं और इस  ब्राह्मण कुमार को भी मुक्त करता हूं | 

जैसी रोहिताश को यज्ञ के समाप्ति का पता लगा वह निर्भीक होकर वन  से लौट आए और अपने पिता के साथ रहने लगे |

इधर विश्वामित्र जी ने यज्ञ बालक शुन:शेप को अपना पुत्र बना लिया | विश्वामित्र जी ने Raja Harishchandra को श्राप से मुक्ति दिलाई और उनके  पुत्र की रक्षा की इसके फलस्वरूप उन्होंने राजा की परीक्षा लेनी चाही |

कैसे ली विश्वामित्र जी ने Satyavadi Raja Harishchandra  की  परीक्षा |

क्योंकि उस समय हरिश्चंद्र एक धर्म परायण और सत्य निष्ठा वाले राजा के रूप में प्रसिद्ध थे | उनकी सत्य- निष्ठा, धर्म – परायणता की परीक्षा लेने की बात विश्वामित्र जी ने सोची |

विश्वामित्र जी ने परीक्षा लेने का  मार्ग तय किया और Raja Harishchandra के स्वप्न में आए | स्वप्न में उनसे पूरा राज्य पाठ दक्षिणा के रूप में ले लिया| 

Raja Harishchandra  ने अपना पूरा राज्य पाठ स्वप्न में विश्वामित्र जी को दान में दे दिया | इसे अगले ही दिन विश्वामित्र जी उनके भरे दरबार में पहुंचे |

कहा हे राजन ! आपने मुझे यह राज दान में दे दिया है , तो आप यहां पर एक राजा के रूप में क्यों बैठे हो | इस पर राजा हरिश्चंद्र ने कहा कि मैंने आपको ऐसा  दान कब दिया है गुरुवर? 

इस पर विश्वामित्र जी ने उन्हें याद दिलाया कि आपने स्वप्न में यह पूरा राज्य मुझे दान के रूप में दे दिया| इस बात  का स्मरण राजा हरिश्चंद्र (Raja Harishchandra ) को आया और उन्होंने स्वीकार किया कि उन्होंने यह राज्य विश्वामित्र जी को दान में दे दिया है   | उसके बाद उन्होंने वह राज्य छोड़कर काशी जाने का  निर्णय लिया |

परंतु विश्वामित्र जी ने याद दिलाया कि आपने तो पूरा राज्य मुझे दान में दे दिया है इसके फल शुरू आप दक्षिणा के रूप में सात भर सोना देने का भी निर्णय लिया था |

अब यह राज्य तो मेरा हो गया है, तो आप इसमें से दक्षिणा तो नहीं दे सकते है | तो आप कहीं और से मेरे दक्षिणा का प्रबंध करें इस पर हरिश्चंद्र ने विश्वामित्र जी से कुछ समय मांगा और कहां कि मैं आपको दक्षिणा अवश्य दूंगा |

Raja Harishchandra ने दक्षिणा इकट्ठा करने के लिए काशी की ओर चल पड़े और इनके साथ उनकी पत्नी और पुत्र भी चल पड़े | पत्नी और पुत्र को एक ब्राह्मण के यहां पर गिरवी  के रूप में रख दिया और वहां से दक्षिणा का कुछ धन इकट्ठा किया |इसके उपरांत वह स्वयं को काशी के शमशान पर डोम (चांडाल ) के हाथों खुद को बेच दिया और जो धन मिला उससे विश्वामित्र जी को दक्षिणा देने के लिए इकठा कर लिया | Raja Harishchandra की परीक्षा यहीं पर खत्म नहीं हुई भगवान उनकी परीक्षा बार-बार लेता रहा |

satyavadi raja harishchandra
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हरिश्चंद्र ( Raja Harishchandra )  के सत्यवादी और धर्म -परायण   होने  की वजह से उनकी पत्नी और बच्चे को भी अत्यंत दुख झेलना पड़ा  |  ब्राह्मण के यहां पर पत्नी को बेचने के उपरांत इनका पुत्र रोहिदास पत्नी के साथ में ही रहता और उस ब्राह्मण के  पूजा के लिए पुष्प एकत्रित करने का कार्य करता |

एक  दिन ऐसा हुआ कि जब बालक रोहिताश पुष्प चुन रहा था उस समय रोहिताश को सर्पदंश का शिकार होना पड़ा | जिससे उसकी मृत्यु हो गई मां तारा को जैसे ही बात का पता लगा , मानव उनके ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था | क्योंकि एक तो उन्हें पुत्र की मृत्यु का दुख था |

दूसरा उस पुत्र का अंतिम संस्कार करने के लिए भी उनके पास कोई साधन भी  नहीं था |वह अत्यंत दुखी मन से अपने पुत्र को अपने गोद में लेकर स्मशान भूमि की ओर निकल पड़े निकल पड़ी|  स्मशान भूमि में जाते-जाते उन्हें काफी विलंब हो गया और रात हो गई |

रानी तारा  अपने पुत्र का मृत शरीर लेकर श्मशान भूमि में पहुंची और वहां के पहरेदार से  शवदाह की अनुमति मांगी परंतु सामने से आदेश आया कि आप यहां का जो कर है , उसे अदा करें शवदाह करें |  यह यह सुनकर रानीतारा  ने कहा कि मेरे पास कर देने के लिए कुछ भी नहीं है | परंतु उस पहरेदार में कहां की मैं बिना करके आपको शवदाह  की आज्ञा नहीं दे सकता |

 इस तरह संवाद करने से रानीतारा ने  राजा हरिश्चंद्र को पहचान लिया साथ ही साथ Raja Harishchandra ने भी रानी तारा और अपने पुत्र रोहिताश को पहचान लिया और अत्यंत दुखी भी हुए| 

परंतु Raja Harishchandra ने रानी तारा से कहा की हे देवी मैं तो यहां पर किसी और की नौकरी करता हूं, और उसकी आज्ञा है कि मैं बिना कर लिए किसी को भी  शवदाह की आज्ञा नहीं दे सकता |

अतः आपको मुझे कर के रूप में कुछ ना कुछ तो देना पड़ेगा |इस पर रानी ने अपने आंचल का एक टुकड़ा फाड़कर कर के रूप में उस  प्रहरी satyavadi raja harishchandra को  दीया| 

उसी समय एक आकाशवाणी हुई और विश्वामित्र जी प्रकट हुए कहा  की हे राजन ! आप अपने सत्य निष्ठा , कर्तव्य परायणता , धर्म परायणता की परीक्षा में पूरी तरह सफल हुए यह सब आपकी सत्य निष्ठा और कर्तव्यनिष्ठा देखने के लिए ही परीक्षा ली गई थी | जिसमें आप सफल रहे आपका यह सत्य निष्ठा , कर्तव्य निष्ठा को युगो – युगो तक  सराहा जाएगा और इससे मनुष्य को कलयुग में भी मार्ग दर्शन होता रहेगा |

इसलिए लोग कहते है  satyavadi raja harishchandra जी के बारे में !

 चन्द्र टरै सूरज टरै, टरै जगत व्यवहार, पै दृढ श्री हरिश्चन्द्र का टरै न सत्य विचार।- Satyavadi Raja Harishchandra

निष्कर्ष

हमें satyavadi raja harishchandra के जीवन से सीखने को मिलता है की हमारे सामने कैसी भी परिस्थिति क्यों ना हो परन्तु हमें हमेश ही सत्य का साथ देना चाहिए , सत्य बोलना चाहिए , सत्य के साथ हमेशा खड़े रहना चाहिए | क्यों की अंत में विजय केवल सत्य और सत्य का साथ देने वालो की ही होती है |

मुझे पूरी उम्मीद है की आप को satyavadi raja harishchandra राजा  हरिश्चंद्र जी के बारे में पूरी जानकारी मिली होगी अगर  आप के पास भी इनके बारे में कोई जानकारी है तो वह आप मुझे साझा कर सकते है जिससे पड़ने वालो को और भी ज्यादा जानकारी मिल सके |

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