Swami Vivekananda in Hindi Biography & Quote | स्वामी विवेकानंद की जीवनी

स्वामी विवेकानंद की जीवनी (Swami Vivekananda in Hindi & Quote  ) के माधयम से हम लोग स्वामी जी के जीवन परिचय , उनके भाषण , उनके विचार और युवाओ के लिए मह्त्वपूर्ण कथन पर प्रकाश डालेंगे |

हम “राष्ट्रिय युवा दिवस” कब और क्यों मानते है ? स्वामी विवेकानंद जी को कैसे याद करते है उस पर भी प्रकाश डालेंगे |

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी सन 1863 में मकर संक्रांति के दिन कोलकाता में हुआ था | वेदांत के प्रसिद्ध और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु इनका वास्तविक नाम नरेंद्रनाथ दत्त था | 1893 में अमेरिका में शिकागो में विश्व माह धर्म सभा में भारत की ओर से प्रतिनिधित्व करने का अवसर प्रदान हुआ | भारत का वेदांत अमेरिका यूरोप  के हर एक देश में स्वामी विवेकानंद की प्रस्तुति के कारण ही पहुंच पाया |

उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की जो आज वर्तमान समय में भी अपना कार्य कर रही है उन्होंने प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत मेरे अमेरिकी भाइयों एवं बहनों के साथ करने के लिए काफी प्रसिद्ध हुआ | उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य से सबका दिल जीत लिया और उस हाल में कम से कम पांच 10 मिनट तक तालियां बजती  रही|

swami vivekananda in hindi & quote
Swami Vivekananda in Hindi & Quote

 स्वामी विवेकानंद की जीवनी (Swami Vivekananda in Hindi Biography)

कोलकाता में 12 जनवरी 1863 को मकर संक्रांति के दिन सप्तमी तिथि को स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ था | इनका बचपन का नाम “नरेंद्र दत्त ” था | इनके पिता “श्री विश्वनाथ ” कोलकाता के हाई कोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे | इनके पिता पश्चिमी सभ्यता में विश्वास रखते थे | अपने पुत्र नरेंद्र को भी पढ़ा लिखा कर पश्चिमी सभ्यता के  मार्ग पर चलाना चाहते थे  ।  जिसके लिए नरेंद्र नाथ जी को अंग्रेजी पढ़ने के लिए बहुत ही  प्रोत्साहित किया करते थे | इनकी माता का नाम ” भुनेश्वरी देवी ” जो हिंदू धार्मिक विचारों की  महिला थी, उनका अधिकांश समय भगवान शिव की पूजा आराधना में व्यतीत होता था |इनको दो पुत्रियां थी, परंतु इनकी माता के मन में एक पुत्र की विशेष लालसा थी| जिसके लिए यह भगवान शिव से प्रार्थना करती थी | इन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हो, इनके प्रार्थना  के फल स्वरुप इन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई  इसका नाम नरेंद्र दत्त नाथ रखा गया |  यह बालक बहुत तेजस्वी था , बचपन से ही इनकी बुद्धि बड़ी ही तीव्र थी| यह परमात्मा को पाने की लालसा हेतु सबसे पहले “ब्रम्हा समाज ” में गए किंतु उनके मन को थोड़ा भी संतोष ना हुआ | वह वेदांत और योग को पश्चिम संस्कृति में प्रस्तुत करने के लिए महत्वपूर्ण योगदान देना चाहते थे|

बालक नरेंद्र दत्त का जन्म एक धनी परिवार में हुआ था ,परंतु कुछ समय के पश्चात इनके पिता विश्वनाथ दत्त की मृत्यु हो गई| घर का सारा भार नरेंद्र पर आ पड़ा | घर की दशा दिन पे  दिन बहुत खराब हो रही थी | अत्यंत गरीबता में भी नरेंद्र बड़े अतिथि  प्रेमी थे , स्वयं  भूखा रहकर अतिथि को भोजन अवश्य कराते थे |

स्वामी विवेकानंद ने अपना जीवन अपने गुरु श्री रामकृष्ण को समर्पण कर चुके थे |गुरूदेव के समाधि ( शरीर त्याग) के दिनों में अपने घर और परिवार की नाज़ुक हालत की चिंता किए बिना, स्वयं के भोजन की चिंता किए बिना गुरु की सेवा में रात दिन लगे रहते थे |

विश्वेश्वर शिव ( काशीविश्वनाथ ) के वरदान से इस पुत्र की प्राप्ति हुई थी | इस कारण मां ने इनका नाम विश्वेश्वर नामकरण के समय इन्हें “नरेंद्र दत्त ” का नाम मिला और बचपन में लोग दुलारपुर “वीले ” नाम से भी पुकारते थे|

जब बालक नरेंद्र नाथ थोड़ा चलने  की क्षमता आते ही इतने चंचल होते थे कि इनकी देखभाल के लिए दो  दाइयो की नियुक्ति करनी पड़ी |दौड़-धूप और चंचलता  की कोई सीमा न थी जब रोने लगते तो इन्हें शांत करा पाना असंभव था , दो बड़ी बहनें  इनके अत्याचार से परेशान हो जाती उन्हें पकड़ कर तंग करने लगते और जब वह इन्हे पकड़ने के लिए जाती वे दौड़कर नाली में जाकर खड़े हो जाते और वहीं से तरह-तरह प्रकार के मुंह बनाकर उन बहनों के क्रोध को और भड़का देते थे |

माता यह सब देख कर तंग आकर कहती है महादेव आपकी सेवा करने का आखिरकार यही फल मिला उन्होंने अपना एक भूत ही मेरे पास भेज दिया है | एक दिन किसी भी उपाय से उन्हें शांत  करने में असमर्थ होकर मां ने उन्हें जबरदस्ती नल के नीचे खींच लिया और शिव , शिव कहते हुए उनके ऊपर पानी डालने लगी आश्चर्य की बात बालक तुरंत ही शांत हो गया । तब से उनके चंचल होने पर इसी उपाय से उन्हें शांत किया जाता था |

बालक “नरेंद्र दत्त ” जी के माता एक धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी । उनको रामायण , महाभारत ,भजन ,कीर्तन सुनने का बहुत ही ज्यादा शौक था | क्योंकि वह धार्मिक प्रवृति की महिला थी | इनके घर पर अक्सर ब्राह्मण और कथा वाचक आते रहते थे | भजन कीर्तन होता रहता था इसका असर यह रहा कि बालक नरेंद्र नाथ के ऊपर इसका गहरा प्रभाव पड़ा और ईश्वर  को जानने के प्रति उनकी रुचि दिन प्रतिदिन बढ़ती रही कभी-कभी तो यह ब्रह्मण और अपने माता-पिता से ऐसे प्रश्न करते थे कि जिनका उत्तर दे पाना इन सब लोगों के लिए कठिन कार्य था ईश्वर को जानने के प्रति उत्सुकता कभी भी उनके मन से खत्म ना हुई |

 स्वामी विवेकानंद की गुरु के प्रति निष्ठा | Swami Vivekananda in Hindi

जब इनके गुरु श्री रामकृष्ण जी शरीर त्याग की अवस्था में थे तो वह काफी कमजोर हो गए थे उन्हें एक बड़ी बीमारी ने ग्रसित कर लिया था ।जिसके कारण इनके गुरु श्री राम कृष्ण हरि जी को काफी पीड़ा का सामना करना पड़ा । वह बिल्कुल असहाय स्थिति में थे । एक बार का वृतांत है कि किसी ने गुरुदेव की सेवा में घृणा और निष्क्रियता दिखाई तथा घृणा  से नाक भौं -सिकोड़ा  यह देखकर स्वामी जी को क्रोध आया अपने गुरु भाई को पाठ पढ़ाते हुए और गुरुदेव के प्रत्येक वस्तु के प्रति प्रेम दिखाते हुए उन्होंने  बिस्तर के पास रखें थूक दान को स्वयं ही फेंकने लगे | इससे इनके गुरु के प्रति निष्ठा का भाव अत्यंत देखा जा सकता है इन्होंने अपने को गुरु के प्रति पूरी तरह से समर्पित कर दिया था समग्र विश्व में भारत के अमूल्य आध्यात्मिक भंडार की सुगंध को महका सके |

इनके इस महान व्यक्तित्व की सजीवता से  ऐसी गुरु भक्ति और ऐसी गुरु सेवा के प्रति अनन्य निष्ठा भावना जागृत होती है|

स्वामी विवेकानंद बड़े ही दूर दृष्टि वाले व्यक्ति थे उन्होंने एक नए समाज की कल्पना की थी ऐसा समाज जिसने जाति धर्म के आधार पर मनुष्य में कोई भेदभाव ना रहे| क्योंकि उस समय की परिस्थिति में भेदभाव की भावना सबके मन में विशाल रूप से व्याप्त थी  | उस समय की परिस्थिति को देखते हुए उन्होंने नए समाज के निर्माण के लिए अनेकों कार्य किए जिसने जात पात का भेदभाव को मिटाना लोगों को  उनके अधिकार का हक़ दिलाना |

शिकागो महा धर्म सम्मेलन की यात्रा और भाषण | Swami Vivekananda in Hindi

1893 ई में उत्तरी अमेरिका के शिकागो नगर ने एक भव्य मेले का आयोजन हुआ था | दुनिया भर में जहां भी जो भी अच्छी-अच्छी चीजें हैं उनका संग्रह करके उस मेले में प्रदर्शित किया गया था | इस मेले में वैज्ञानिकों की एक सभा हुई और रोमन कैथोलिक ईसाईयों ने अपने धर्म की श्रेष्ठता प्रमाणित करने के उद्देश्य से वहां एक धर्म सभा का भी आयोजन किया था |

विश्व के सभी देशों के सभी संप्रदाय से अनुरोध किया गया था कि वह उस सभा में अपने धर्म का सार मर्म समझने को प्रतिनिधि भेजें ऐसा विशाल मेला और ऐसी विराट सभा इससे पहले कभी आयोजित नहीं हुई | मद्रास के कुछ युवक ने स्वामी जी की प्रतिभा से  मुक्त होकर उनसे हिंदू धर्म के प्रतिनिधि के रूप में अमेरिका जाने का अनुरोध किया |

स्वामी जी भी समझ गए थे कि भारत में धर्म प्रचार करके इस देश का भला संभव नहीं है | तत्पश्चात सभ्यता के बाहरी चकाचौंध पर मुक्त होकर भारत वासियों ने अपने धर्म एवं संस्कृति को अत्यंत ही दिन समझने लगे हैं इसके उपरांत अन्य  राष्ट्रों को भारतीय सभ्यता समझा देने से उनके मुख से उनकी प्रशंसा सुनकर भारतवासी जागृत हो सके और इसके उपरांत देश भी अपनी सभ्यता में सुधार लाकर उन्नत होगा |

यही सब सोचकर स्वामी जी शिकागो की धर्म सभा में भाग लेने को सहमत हो गए | मद्रास के भक्तों और  खेतड़ी के राजा ने उनके अमेरिका जाने की सारी व्यवस्था कर दी 31 मई 1893 को स्वामी जी अमेरिका की यात्रा पर चल पड़े और जुलाई के मध्य में शिकागो शिकागो पहुंचे |

संसार के व्यवहार से अनुभवहीन सन्यासी को विविध प्रकार की समस्याओ और असुविधाओं का सामना करना पड़ा |

वहां पहुंचने के उपरांत उनको मालूम चला कि सभा सितंबर में प्रारंभ होनी है और किसी न किसी संस्थान द्वारा नियुक्त  प्रतिनिधियों को ही  व्याख्यान में बोलने का अवसर मिलेगा |

यह सूचना मिलते ही स्वामी जी बिल्कुल निराश हो गए | डेढ़ -दो  महीने तक शिकागो में निवास करने के लिए उनके पास धन की आवश्यकता थी | फिर वह किसी संस्थान से परिचय पत्र भी लेकर नहीं गए थे | अतः धर्म सभा में भाग लेना उनके लिए असंभव दिख रहा था | परंतु जब वे अमेरिका ही पहुंचे थे, तो कुछ ना कुछ किए बिना लौट जाना उचित नहीं समझा ऐसा सोचकर वे किसी अवसर की प्रतीक्षा में भगवान पर निर्भर होकर रह गए|

वे प्रतिदिन मेला देखने जाया करते थे , उनकी भारतीय वेशभूषा देखकर लोगों का ध्यान बस उनकी ओर आकृष्ट हो जाता कोई- कोई तो  उनके साथ वार्तालाप करने भी चले आते  थे | इस प्रकार से  वहां पर अमेरिकी  लोगों के साथ थोड़ा थोड़ा परिचित होने लगे उन्हें पता चला कि निकटतम स्थित बॉस्टन नगर काम खर्चीला है |

तो 12 दिनों के बाद उधर चल पड़े ट्रेन में एक महिला ने उनके साथ उनका परिचय हुआ | उस महिला ने भारतीय सन्यासी के प्राच्य देशो की    अद्भुत बातें सुनकर अपने मित्रों को सुनाने के स्वामी जी से अपने घर अतिथि ग्रहण करने का अनुरोध किया अपरिचित देश में अप्रत्याशित सहारा पाकर स्वामी जी ने सहर्ष निमंत्रण स्वीकार कर लिया |

स्वामी जी की बातें सुनने के लिए अपने मित्रों को आमंत्रित किया वह सभी स्वामी जी की अपूर्व प्रतिभा देखकर चकित रहते हैं | वहां पर महिलाओं की एक समिति थी |  उनका  यह व्याख्यान सुनकर श्रोता गण बहुत ही मंत्र मुक्त हो गए| इनके बारे में विविध प्रकार की चर्चाएं  प्रारंभ होने लगी |

फिर विख्यात हार्वर्ड विश्वविद्यालय में ग्रीक भाषा के  प्रधान अध्यापक  राइट महोदय को भी उनकी विद्वता के बारे में पता चला | एक दिन वह उनसे मिलने आए और उनके साथ कई घंटे बिताए उनकी बातों से मंत्र मंत्रमुग्ध होकर उन्होंने धर्म सभा में स्वामी जी के प्रतिनिधित्व की सारी बाधाएं दूर करके इसकी सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली और स्वामी जी को उस सभा में एक अवसर प्रदान किया|

11 सितंबर 1893 ई को विश्व के सभी देशों के सभी धर्मों के प्रतिनिधि सभागार में एकत्रित  हुए| स्वामी जी गेरुआ वस्त्र पहने और पगड़ी धारण किए हुए थे | पूरा सभागृह विद्वान तथा धार्मिक लोगों से खचाखच भरा हुआ था |

पहले दिन सभापति महोदय ने सबसे अंत में स्वामी जी को सभी श्रोताओं से परिचित करवाया | स्वामी जी अपना भाषण देने के लिए प्रारंभ किया तो सबसे पहले उन्होंने ”Sisters and  Brother of  America ” कह कर संबोधित किया वहां उपस्थित सात -आठ हजार लोगों की तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा सदन गुजने लगा |

इसके उपरांत स्वामी जी में सबका साधुवाद  ग्रहण किया |  हिंदू धर्म की और अन्य सभी धर्म के प्रति सहानुभूति के विषय में संक्षेप में बोलने के बाद वापस अपनी जगह पर बैठ गए |

परंतु उनका वह छोटा सा भाषण सुनकर अमेरिका वासिय मंत्रमुग्ध हो गए |  अगले दिन वहां के सभी समाचार पत्रों में स्वामी जी के व्याख्यान की धीमी – धीमी प्रशंसा होने लगी इसके बाद प्रत्येक अधिवेशन में श्रोता गण बड़ी उत्सुकता से उनका व्याख्यान सुनने की राह खोजते रहे सभा में अनेकों नीरस और लम्बा  प्रबंधों के पाठ तथा व्याख्यान हुआ करते थे|

अध्यक्ष महोदय सभा के आरंभ ही घोषणा कर देते थे , कि अंत में स्वामी विवेकानंद कुछ बोलेंगे उनका व्याख्यान सुनने के लिए सारे नीरस व्याख्यानों को धैर्य पूर्वक सुनते थे | अन्त में स्वामी विवेकानंद जी हिन्दू धर्म की महानता और विचार बताते थे, जिससे हिन्दू धर्म की जय जयकार होने लगी |

स्वामी विवेकानंद जी धर्म सम्मेलन की कुछ पंक्तिया प्रकार से है 

स्वामी जी अपने व्याख्यान में बताते थे कि “आत्मा अमर है प्रयास करके उसका साक्षात्कार किया जा सकता है और इसके फलस्वरूप मृत्यु भय से मुक्त हुआ जा सकता है ” |

“जैसे विभिन्न, विभिन्न नदियों के धाराओं के स्रोत विभिन्न ,विभिन्न जगहों से निकलकर समुद्र में मिल जाते हैं ठीक उसी प्रकार मनुष्य विभिन्न विभिन्न रास्तों से  निकलकर प्रभु में समा जाते हैं “|

स्वामी विवेकानंद के सुविचार ( Swami Vivekananda Motivational Quotes in Hindi )

Swami Vivekananda Motivational Quotes in Hindi

Swami Vivekananda in Hindi Quote 1:

  • उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाये।

Swami Vivekananda in Hindi Quote 2:

  • खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप हैं।

Swami Vivekananda in Hindi Quote 3:

  • तुम्हें कोई पढ़ा नहीं सकता, कोई आध्यात्मिक नहीं बना सकता। तुमको सब कुछ खुद अंदर से सीखना हैं। आत्मा से अच्छा कोई शिक्षक नही हैं।

Swami Vivekananda in Hindi Quote 4:

  • सत्य को हज़ार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक सत्य ही होगा।

Swami Vivekananda in Hindi Quote 5:

  • बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप हैं।

Swami Vivekananda in Hindi Quote 6:

  • ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हमही हैं जो अपनी आँखों पर हाँथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार हैं।

Swami Vivekananda in Hindi Quote 7:

  • विश्व एक विशाल व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।

Swami Vivekananda in Hindi Quote 8:

  • दिल और दिमाग के टकराव में दिल की सुनो।

Swami Vivekananda in Hindi Quote 9:

  • शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु हैं। विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु हैं। प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु हैं।

Swami Vivekananda in Hindi Quote 10:

  • किसी दिन, जब आपके सामने कोई समस्या ना आये – आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं।

Swami Vivekananda in Hindi Quote 11:

  • एक समय में एक काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ।

Swami Vivekananda in Hindi Quote 12:

  • “जब तक जीना, तब तक सीखना” – अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक हैं।

Swami Vivekananda in Hindi Quote 13:

  • जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भागवान पर विश्वास नहीं कर सकते

Swami Vivekananda in Hindi Quote 14:

  • जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है, यह अग्नि का दोष नहीं हैं।

Swami Vivekananda in Hindi Quote 15:

  • चिंतन करो, चिंता नहीं, नए विचारों को जन्म दो।

Swami Vivekananda in Hindi Quote 16:

  • हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का धयान रखिये कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण हैं। विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं।

Swami Vivekananda in Hindi Quote 17:

  • जैसा तुम सोचते हो, वैसे ही बन जाओगे। खुद को निर्बल मानोगे तो निर्बल और सबल मानोगे तो सबल ही बन जाओगे।

Swami Vivekananda in Hindi Quote 18:

  • कुछ मत पूछो, बदले में कुछ मत मांगो। जो देना है वो दो, वो तुम तक वापस आएगा, पर उसके बारे में अभी मत सोचो।

Swami Vivekananda in Hindi Quote 19:

  • जो कुछ भी तुमको कमजोर बनाता है – शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक उसे जहर की तरह त्याग दो।

Swami Vivekananda in Hindi Quote 20:

  • तुम फ़ुटबाल के जरिये स्वर्ग के ज्यादा निकट होगे बजाये गीता का अध्ययन करने के।

स्वामी विवेकानंद जी का योगदान तथा महत्व

स्वामी विवेकानंद 39 वर्ष की अल्प आयु में जो काम कर गए । वह आने वाले अनेक सदियों तक युवा  पीढ़ियों का मार्गदर्शन  करते रहेंगे|

मात्र 30 वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानंद अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया और उसमें सर्व -भौमिक पहचान दिलवाई|

रविंद्र नाथ टैगोर जी कहते थे, कि यदि आपको भारत को जानना है तो आप विवेकानंद जी को पढ़िए । जब भी आप उनको पढ़ेंगे तो  केवल आपको उसमें सकारात्मक चीजें ही पाएंगे नकारात्मक कुछ भी नहीं है|

” रोला रोमा” ने उनके बारे में कहा था स्वामी जी जहां भी गए सर्वप्रथम  रहे , हमें उनके द्वितीय होने की कल्पना करना भी असंभव है | उनमें हर व्यक्ति अपना एक नेता एक मार्गदर्शक दिखता है | वह ईश्वर के प्रति थे और सब पर प्रभुत्व प्राप्त कर लेना ही उनकी विशेषता थी |

हिमालय प्रदेश में एक बार अनजान यात्री ने उन्हें देखकर रुक गया और आश्चर्य से चिल्लाकर बोला ! यह ऐसा हुआ मानो उस व्यक्ति के आराध्य देव ने अपना नाम उनके माथे के ऊपर लिख दिया |

यह केवल एक सन्यासी ही नहीं थे , अपितु महान देशभक्त प्रखर वक्ता विचारक लेखक और मानव प्रेमी ही थे | अमेरिका से लौटने के बाद भारतवासियो से आह्वाहन किया कि आप अपने संस्कृति को जानो अपने को पहचानो | विदेशी चकाचौंध में मत आओ |

इनके आवाहन का ही असर था , कि जब गांधी जी ने आजादी के लड़ाई लिए जो समर्थन जो जनसमर्थन मिला वह विवेकानंद द्वारा जागृत किए हुए लोग थे | उनसे प्रेरित हुए लोग थे इस प्रकार स्वामी जी भारत की स्वतंत्रता के भी प्रमुख प्रेरणास्रोत बने|

उनका विश्वास था कि भारतवर्ष धर्म एवं दर्शन की पुण्य भूमि है । यही बड़ी-बड़ी महात्माओं ऋषियों का जन्म हुआ है । यही सन्यास एवं त्याग की भावना उत्पन्न हुई | आज से ही नहीं अपितु आदिकाल से ही भारत में चली आ रही है|

स्वामी जी के विचार

” उठो जागो ,स्वयं जागकर औरों को जगाओ ,अपने नर  जन्म को सफल करो और तब तक रुको नहीं जब तक की लक्ष्य प्राप्त ना हो जाए”

स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु कब और कैसे हुई ?

स्वामी विवेका नन्द कि स्वर्गवास कम आयु में ही हो गई जब यह मात्र 39 वर्ष के ही थे | 4 जुलाई 1902 को स्वामी विवेकानंद जी बेलूर मठ में पूजा की और योग भी किया |

उसके उपरांत अपने शिष्यों को योग की शिक्षा दी उसके बाद उनसे कहा की मैं ध्यान करने जा रहा हूँ| शिष्यों को ध्यान भंग करने से मना किया और उसके बाद अपने कमरे में ध्यान करने चले गए और धयान से वापस नहीं आये | अपने शरीर कि त्याग कर दिया |

राष्ट्रीय युवा दिवस ( National Youth Day )कब मानते है ?

  • हर वर्ष 12 जनवरी को भारत में राष्ट्रिय युवा दिवस ( National Youth Day ) मानते है | आज ही के दिन स्वामी विवेकानंद जी का जन्म हुआ था | इस लिए हम आज के दिन राष्ट्रिय युवा दिवस (National Youth Day )मानते है|
  • स्वामी विवेकानंद जी के जन्म दिन के ही दिन राष्ट्रिय युवा दिवस (National Youth Day ) के रूप में मनाया जाता है और उनको याद किया जाता है | इस दिन को राष्ट्रिय युवा दिवस (National Youth Day) इस लिए मनाया जाता है , क्यों की इन्होने युवाओ को जागृत करने का कार्य किया साथ ही साथ इनके जीवन से युवा पीढ़ी को बहुत कुछ सिखने को मिलता है |

निष्कर्ष

स्वामी विवेकानंद  के जीवन परिचय और उनके विचार  ( Swami Vivekananda in Hindi & Quote)  हमें हमेसा ही प्रेरित करते रहेंगे स्वामी जी आज हम लोगो के बीच नहीं है परन्तु उनके विचार हमारे आप के बीच है | स्वामी जी के दिखाए गए मार्ग पर चल कर ही हम मानव जाति का कल्याण और धर्म की रक्षा कर सकते है इनके बताये मार्ग पर चल कर जीवन को सफल बनाया जा सकता है और भारत को विश्व गुरु बनाया जा सकता है |

इनके जीवन से हमें सीखने को मिलता है की हम खुद पर कैसे नियंत्रण प् सकते है और जीवन में आने वाली समस्याओ से कैसे निकल सकते है | स्वामी विवेकानन्द जी के अनुसार ऐसी कोई समस्या ही नहीं है जिसका समाधान न हो | ऐसे विचारवान पुरुष रूपी परमात्मा को हम लोग समझ कर उनके दिखाए मार्ग पर चल कर मानव जीवन सफल बना सकते है |

साथ ही साथ 12 जुलाई को राष्ट्रिय युवा दिवस (National Youth Day) के रूप में याद करके उनको सच्ची श्रद्धांजलि दे सकते है |

धन्यवाद !

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