सूरदास का जीवन परिचय | Surdas ka Jivan Parichay-2024

Surdas ka jivan parichay में सूरदास जी जीवन ,जन्म ,मृत्यु ,गुरु और रचनाएं ( ग्रंथ एवं काव्य ), के विषय में पढेंगे |

Table of Contents

सूरदास जीवन परिचय | Surdas ka Jivan Parichay

सूरदास जी का जन्म आगरा मथुरा मार्ग के निकट स्थित रुनकता नामक गांव में हुआ था |  इनका जन्म 1478 ईस्वी में हुआ था कुछ प्रसिद्ध विद्वानों का मत है की सूरदास जी का जन्म निर्धन ब्राह्मण सारस्वत परिवार के सीही गांव में हुआ  था | सूरदास जी के जन्म के विषय में काफी भ्रांतिया हैं | कुछ लोगों का मानना है कि सूरदास जी जन्म से अंधे थे |  परंतु कुछ लोगों का यह भी मानना है कि वह जन्मांध अंधे नहीं थे |

surdas ka jivan parichay
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क्योंकि सूरदास जी की रचनाएं इस प्रकार का वर्णन  है कि इन रचनाओं को पढ़कर कोई यह अंदाजा नहीं लगा सकता है कि सूरदास जी एक अंधे व्यक्ति थे |

इनकी रचनाओं में इतने अधिक मात्रा में प्रकृति दर्शन की छवियाँ  झलकती हैं जिन्हें पढ़कर कोई अंदाजा नहीं लगा सकता है कि सूरदास जन्मांध अंधे थे|सूरदास जी के पिताजी का नाम रामदास था | प्रारंभिक दिनों में सूरदास जी आगरा के निकट गऊघाट में रहते थे| जो मथुरा के निकट  श्री नाथ मंदिर के समीप  रहते थे | वहीं पर इनकी भेंट  श्री वल्लभाचार्य  जी से हुई और सूरदास जी इनके शिष्य बन गए |  वल्लभाचार्य जी से शिक्षा पाकर सूरदास जी कृष्ण लीला के पद गाने लगे |

सूरदास जी के जन्म के विषय में  बहुत ही मतभेद हैं ,इनका जन्म कुछ लोग रुनकता तो कुछ लोग सीही में हुआ था ऐसा मानते है |  इनका जन्म 1478 ईस्वी में हुआ था| सूरदास जी की मृत्यु गोवर्धन के निकट पारसोली नामक ग्राम में 1580 ईस्वी में हुआ|

कुछ लोगों का मानना है कि सूरदास जी जन्म से अंधे थे परंतु कुछ लोगों का यह भी मानना है कि वह जन्मांध अंधे नहीं  थे क्योंकि सूरदास जी ने प्रकिति तथा बाल मनोवृत्ति एवं मानव के स्वभाव इतना सुंदर वर्णन किया है जिसे ऐसा प्रतीत होते हैं कि कोई जन्मांध व्यक्ति ऐसा वर्णन नहीं कर सकता है परंतु कुछ साछ्यो   के आधार पर  सूरदास जी को लोग जन्म से अंधे मानते हैं

सूरदास का संछिप्त परिचय| Surdas ka jivan parichay

 महत्वपूर्ण बिंदु ( Important points)

    जानकारी   (Information )

नाम ( Name)       सूरदास
जन्म (Birth)       1478 ई0
मृत्यु (Death)       1580 ई0
जन्म स्थान (Birth Place)       रुनकता और सिहि
पिता का नाम (Father Name)       रामदास सारस्वत
गुरु (Teacher)       बल्लभाचार्य
भाषा(Language)       ब्रजभाषा
रचनायें (Poetry)      सूरसागर, सूरसारावली,साहित्य-लहरी, नल-दमयन्ती,              ब्याहलो

Surdas ka Jivan Parichay हिंदी में |

सूरदास जी का जन्म स्थान 

हिंदी साहित्य का के चमकते सूरत सूरत सूरदास जी का जन्म संवत् 1535 वि० (सन 1478 ई०) में आगरा मथुरा जाने वाली सड़क के निकट स्थित रुनकता गांव में हुआ था|

सूरदास जी के माता- पिता 

उनके पिताजी का नाम पंडित राम दास सारस्वत था | इनके माताजी के संबंध में कोई साक्ष्य प्रमाण नहीं मिलता है|

सूरदास के गुरु कौन थे और सुर दास किसके भक्त थे ?

सूरदास जी के दीक्षा के गुरु स्वामी वल्लभाचार्य जी थे |  सूरदास जी भगवान श्री कृष्ण के भक्त थे |

सूरदास जी की शिक्षा-दीक्षा-|Education of Surdas 

महाकवि सूरदास जी ने अपने गुरु वल्लभाचार्य जी से विभिन्न विषयों में अनेकों ज्ञान प्राप्त किए हैं परंतु सूरदास जी को अनेकों भाषाओं का ज्ञान जिनमें ब्रजभाषा अवधि संस्कृत फारसी आदि सम्मिलित है | सूरदास जी को दीक्षा का ज्ञान श्री वल्लभाचार्य जी ने दिया था |

सूरदास जी की रचनाएं ,ग्रंथ एवं काव्य| Surdas compositions texts and poetry

सूरदास जी की मुख्यतः 5 रचनाएं हैं

सूरसागर (Sursagar)

सूरसारावली (Sursaravali)

साहित्य-लहरी (Sahitya-Lahri)

नल-दमयन्ती (Nal-Damyanti)

ब्याहलो (Byahlo )

सूरदास की रचनाओं से यह प्रतीत होता है, कि यह कृष्ण भक्ति करने और उन्हें प्राप्त करने का मार्ग आत्मा को मनुष्य अपने जीवात्मा को सद्गति प्राप्त हो सके|

सूरदास ने वात्सल्य रस श्रृंगार रस और शांत रस को अपनाया था श्री कृष्ण के बाल रूप के अद्भुत सुंदर वर्णन उनकी उनका सजीवी करण,अभिलाषा और आकांक्षा का वर्णन कर विश्वव्यापी बालकृष्ण के स्वरूप का वर्णन प्रकाशित किया था | सूरदास के पदों में भक्ति और श्रृंगार दोनों  रसों का मिश्रण करके उसने संयोग और वियोग जैसे दिव्य गुणों का वर्णन किया हुआ जिसे किसी और के द्वारा करना अत्यंत कठिन है |

श्रीमद्भागवत गीता के गायन में सूरदास जी की रूचि बचपन से ही थी | श्रीमद् भागवत के भक्ति गुरु को सुनकर महाप्रभु वल्लभाचार्य जी ने सूरदास जी को अपना शिष्य बना लिया और श्रीनाथजी के मंदिर में कीर्तन करने लगे अष्टछाप कवियों में सूरदास जी सर्वश्रेष्ठ कवि माने गए हैं अष्टछाप कवियों का संगठन वल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठलनाथ ने किया था |

क्या सूरदास जन्म से अंधे थे ?

श्री गोकुल नाथ की  निजवार्ता , श्री हरि राय कृत भाव – प्रकाश, संस्कृत वार्ता मणिपालाआदि ग्रंथों के आधार पर सूरदास जी को जन्म से अंधा माना गया है

लेकिन राधा कृष्ण के रूप के सौंदर्य का सजीव चित्रण और विविध प्रकार का वर्णन बहुत ही सूक्ष्मारूप से कर पाना किसी भी अंधे व्यक्ति के लिए संभव नहीं है | सूरदास के पदों में इस प्रकार के वर्णन मिलते हैं जिनसे अनुमान लगाया जा सकता है सूरदास दास जी जन्म से अंधे नहीं थे

डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है कि सूरदास जी के पदों में यह ध्वनि जरूर निकल कर आती है की सूरदास जी अपने को जन्म का अंधा और कर्म का अभागा कहते हैं परंतु समय इसके अक्षरों को प्रधान नहीं मानता है|

कुछ साहित्यकारों ने इन्हें जन्मांध  बताया है जिनमें भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का नाम भी आता है|  परंतु सूरदास की रचनाओं में प्रकृति तथा बाल योग एवं मानव स्वभाव का स्वच्छ और सुंदर वर्णन करना किया है जो कोई जन – महान व्यक्ति कदापि नहीं कर सकता है|

सूरदास जी का साहित्यिक व्यक्तित्व

सूरदास जी हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध कवि हैं यह शृंगार रस के कवि हैं भक्ति काल के कृष्ण शाखा के प्रमुख प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं|

सूरदास की मृत्यु |Surdas’s death

सूरदास जी की मृत्यु 1580 ई ० (संवत् 1642 विक्रमी ) को पारसौली (गोवर्धन के पास) गांवमें हुआ |  यह वही गांव हैं जहाँ पर भगवान् कृष्ण अपनी रासलीलायें रचाते करते थे. जिस जगह पर इनकी मृत्यु हुई है उस स्थान पर आज एक सूरश्याम मंदिर (सूर कुटी) की स्थापना की गयी हैं.

सूरदास के पद और दोहे | Surdas Ke Pad & Dohe in hindi 

सुरदास  जी के कुछ प्रसिद्ध दोहे और पद इस प्रकार से है |

सूरदास के पद और दोहे | Surdas Ke Pad & Dohe in hindi 

“मुख दधि लेप किए”

सोभित कर नवनीत लिए।

घुटुरुनि चलत रेनु तन मंडित मुख दधि लेप किए॥

चारु कपोल लोल लोचन गोरोचन तिलक दिए।

लट लटकनि मनु मत्त मधुप गन मादक मधुहिं पिए॥

कठुला कंठ वज्र केहरि नख राजत रुचिर हिए।

धन्य सूर एकौ पल इहिं सुख का सत कल्प जिए॥

सूरदास के पद और दोहे | Surdas Ke Pad & Dohe in hindi 

“कबहुं बढ़ैगी चोटी”

मैया कबहुं बढ़ैगी चोटी।

किती बेर मोहि दूध पियत भइ यह अजहूं है छोटी॥

तू जो कहति बल की बेनी ज्यों ह्वै है लांबी मोटी।

काढ़त गुहत न्हवावत जैहै नागिन-सी भुई लोटी॥

काचो दूध पियावति पचि पचि देति न माखन रोटी।

सूरदास के पद और दोहे |Surdas Ke Pad & Dohe in hindi 

“दाऊ बहुत खिझायो”

मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायो।

मो सों कहत मोल को लीन्हों तू जसुमति कब जायो॥

कहा करौं इहि रिस के मारें खेलन हौं नहिं जात।

पुनि पुनि कहत कौन है माता को है तेरो तात॥

गोरे नंद जसोदा गोरी तू कत स्यामल गात।

चुटकी दै दै ग्वाल नचावत हंसत सबै मुसुकात॥

तू मोहीं को मारन सीखी दाउहिं कबहुं न खीझै।

मोहन मुख रिस की ये बातैं जसुमति सुनि सुनि रीझै॥

सुनहु कान बलभद्र चबाई जनमत ही को धूत।

सूर स्याम मोहिं गोधन की सौं हौं माता तू पूत॥

सूरदास के पद और दोहे | Surdas Ke Pad & Dohe in hindi 

“मैं नहिं माखन खायो”

मैया! मैं नहिं माखन खायो।

ख्याल परै ये सखा सबै मिलि मेरैं मुख लपटायो॥

देखि तुही छींके पर भाजन ऊंचे धरि लटकायो।

हौं जु कहत नान्हें कर अपने मैं कैसें करि पायो॥

मुख दधि पोंछि बुद्धि इक कीन्हीं दोना पीठि दुरायो।

डारि सांटि मुसुकाइ जशोदा स्यामहिं कंठ लगायो॥

बाल बिनोद मोद मन मोह्यो भक्ति प्राप दिखायो।

सूरदास जसुमति को यह सुख सिव बिरंचि नहिं पायो॥

सूरदास के पद और दोहे | Surdas Ke Pad & Dohe inhindi 

“हरष आनंद बढ़ावत”

हरि अपनैं आंगन कछु गावत।

तनक तनक चरनन सों नाच मन हीं मनहिं रिझावत॥

बांह उठाइ कारी धौरी गैयनि टेरि बुलावत।

कबहुंक बाबा नंद पुकारत कबहुंक घर में आवत॥

माखन तनक आपनैं कर लै तनक बदन में नावत।

कबहुं चितै प्रतिबिंब खंभ मैं लोनी लिए खवावत॥

दुरि देखति जसुमति यह लीला हरष आनंद बढ़ावत।

सूर स्याम के बाल चरित नित नितही देखत भावत॥

सूरदास के पद और दोहे | Surdas Ke Pad & Dohe in hindi 

“भई सहज मत भोरी”

जो तुम सुनहु जसोदा गोरी।

नंदनंदन मेरे मंदिर में आजु करन गए चोरी॥

हौं भइ जाइ अचानक ठाढ़ी कह्यो भवन में कोरी।

रहे छपाइ सकुचि रंचक ह्वै भई सहज मति भोरी॥

मोहि भयो माखन पछितावो रीती देखि कमोरी।

जब गहि बांह कुलाहल कीनी तब गहि चरन निहोरी॥

लागे लेन नैन जल भरि भरि तब मैं कानि न तोरी।

सूरदास प्रभु देत दिनहिं दिन ऐसियै लरिक सलोरी॥

सूरदास के पद और दोहे | Surdas Ke Pad & Dohe 

“अरु हलधर सों भैया”

कहन लागे मोहन मैया मैया।

नंद महर सों बाबा बाबा अरु हलधर सों भैया॥

ऊंच चढि़ चढि़ कहति जशोदा लै लै नाम कन्हैया।

दूरि खेलन जनि जाहु लाला रे! मारैगी काहू की गैया॥

गोपी ग्वाल करत कौतूहल घर घर बजति बधैया।

सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कों चरननि की बलि जैया॥

सूरदास के पद और दोहे | Surdas Ke Pad & Dohe 

” कबहुं बोलत तात”

खीझत जात माखन खात।

अरुन लोचन भौंह टेढ़ी बार बार जंभात॥

कबहुं रुनझुन चलत घुटुरुनि धूरि धूसर गात।

कबहुं झुकि कै अलक खैंच नैन जल भरि जात॥

कबहुं तोतर बोल बोलत कबहुं बोलत तात।

सूर हरि की निरखि सोभा निमिष तजत न मात॥

सूरदास के पद और दोहे | Surdas Ke Pad & Dohe in hindi 

“चोरि माखन खात”

ली ब्रज घर घरनि यह बात।

नंद सुत संग सखा लीन्हें चोरि माखन खात॥

कोउ कहति मेरे भवन भीतर अबहिं पैठे धाइ।

कोउ कहति मोहिं देखि द्वारें उतहिं गए पराइ॥

कोउ कहति किहि भांति हरि कों देखौं अपने धाम।

हेरि माखन देउं आछो खाइ जितनो स्याम॥

कोउ कहति मैं देखि पाऊं भरि धरौं अंकवारि।

कोउ कहति मैं बांधि राखों को सकैं निरवारि॥

सूर प्रभु के मिलन कारन करति बुद्धि विचार।

जोरि कर बिधि को मनावतिं पुरुष नंदकुमार॥

सूरदास के पद और दोहे | Surdas Ke Pad & Dohe in hindi  

“गाइ चरावन जैहौं”

आजु मैं गाइ चरावन जैहौं।

बृन्दावन के भांति भांति फल अपने कर मैं खेहौं॥

ऐसी बात कहौ जनि बारे देखौ अपनी भांति।

तनक तनक पग चलिहौ कैसें आवत ह्वै है राति॥

प्रात जात गैया लै चारन घर आवत हैं सांझ।

तुम्हारे कमल बदन कुम्हिलैहे रेंगत घामहि मांझ॥

तेरी सौं मोहि घाम न लागत भूख नहीं कछु नेक।

सूरदास प्रभु कह्यो न मानत पर्यो अपनी टेक॥

सूरदास के पद और दोहे| Surdas Ke Pad & Dohe 

“धेनु चराए आवत”

आजु हरि धेनु चराए आवत।

मोर मुकुट बनमाल बिराज पीतांबर फहरावत॥

जिहिं जिहिं भांति ग्वाल सब बोलत सुनि स्त्रवनन मन राखत।

आपुन टेर लेत ताही सुर हरषत पुनि पुनि भाषत॥

देखत नंद जसोदा रोहिनि अरु देखत ब्रज लोग।

सूर स्याम गाइन संग आए मैया लीन्हे रोग॥

सूरदास के पद और दोहे |Surdas Ke Pad & Dohe in hindi 

” मिटि गई अंतरबाधा”

खेलौ जाइ स्याम संग राधा।

यह सुनि कुंवरि हरष मन कीन्हों मिटि गई अंतरबाधा॥

जननी निरखि चकित रहि ठाढ़ी दंपति रूप अगाधा॥

देखति भाव दुहुंनि को सोई जो चित करि अवराधा॥

संग खेलत दोउ झगरन लागे सोभा बढ़ी अगाधा॥

मनहुं तडि़त घन इंदु तरनि ह्वै बाल करत रस साधा॥

निरखत बिधि भ्रमि भूलि पर्यौ तब मन मन करत समाधा॥

सूरदास प्रभु और रच्यो बिधि सोच भयो तन दाधा॥

सूरदास के पद और दोहे | Surdas Ke Pad & Dohe in hindi

“कौन तू गोरी”

बूझत स्याम कौन तू गोरी।

कहां रहति काकी है बेटी देखी नहीं कहूं ब्रज खोरी॥

काहे कों हम ब्रजतन आवतिं खेलति रहहिं आपनी पौरी।

सुनत रहति स्त्रवननि नंद ढोटा करत फिरत माखन दधि चोरी॥

तुम्हरो कहा चोरि हम लैहैं खेलन चलौ संग मिलि जोरी।

सूरदास प्रभु रसिक सिरोमनि बातनि भुरइ राधिका भोरी॥

सूरदास जी हिंदी साहित्य के सूरज के रूप में हमेशा ही चमकते रहेंगे, सूरदास जी भक्ति ,वियोग ,वात्सल्य के मिलाप से मिश्रित रचनाओं का वर्णन किया है जो किसी दूसरे की लिए असंभव है |

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